होठों से गिलास लगा कर पीते वक़्त उसकी आँखों में वो सभी दृश्य एक चलचित्र की भाँति गुजर गए, जिनकी वजह से आज वो इस स्थिति में पहुँचा था। "तो क्या आफत आ गयी अगर तुमने मुझे किसी के साथ बिस्तर पर देख लिया? कभी अपने गिरेबान में भी झाँक कर देखो और कहो की तुमने कभी मुझे धोका नहीं दिया?" "भइया अब मैं क्या कहु, आप चाहे तो मैं कुछ पैसे आपको दे सकता हूँ, पर आपने ख़ुद बिना देखे हस्ताक्षर किया है तो मुझे दोष क्यों दे रहे है?" गिलास खाली हो चूका था और साथ में आँखों के आगे चलता चलचित्र भी रुक गया था। अब आँखे भारी हो रही थी, जिस्म भी शिथिल पड़ रहा था, परंतु उसकी आँखों में एक सुकून था। “अब मैं किसी को शिकायत का मौका नहीं दूँगा।” विनय कुमार पाण्डेय १७ मार्च २०१४
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