आज मेरे कलकत्ता प्रवास का आख़िरी दिन था। कल फिर ट्रेन पकड़ कर वापस मुंबई आना था और समान बांधने की तैयारी की जा रही थी। इस बार की छुट्टियों में और कुछ हुआ हो या नहीं, मुझे यह पता चल गया था कि मुझे शुगर और ब्लड प्रेशर दोनों है। अब दवाइयाँ शुरू हो चुकी थी और उम्र भर चलनी थी। माँ पिछले 3 घंटों से गायब थी। मैंने माना किया था कि इतनी दोपहर में कही जाने की जरूरत नहीं है। मैं मुंबई जा रहा था, वहाँ हर वह चीज़ मिलती है जो कलकत्ता में मिलती है। मैंने माँ को साफ़ कह दिया था की मैं समान नहीं बढ़ाऊँगा। फिर भी माँ कही बाहर निकाल गई थी। वह जानती थी कि यदि मुझे पता चला तो मैं जाने नहीं दूँगा, इसलिए चुप चाप बिना बताए चली गयी थी। इसी चक्कर में अपना मोबाइल भी नहीं ले गई थी। घर में सभी परेशान थे। मैं चिल्ला रहा था कि जो भी वो लाएगी बेकार जाएगा क्योंकि मैं कुछ भी ले जाने वाला नहीं हूँ। घर में सब मेरे गुस्से को जानते थे, इसलिए समझाने की कोशिश कर रहे थे। उनका कहना था कि माँ आख़िर माँ होती है, बस उस पर चिल्लाना मत। समान नहीं ले जाना है, मत ले जाओ, पर चिल्ला चिल्ली मत करना।
जब माँ आई तो मेरा गुस्सा उसका गर्मी से क्लांत चेहरा देख कर और बढ़ गया। बाहर 40 डिग्री गर्मी में इस उम्र में उसे क्या जरूरत थी बाहर जाने की। दरअसल मेरा गुस्सा मेरी मजबूरी की वजह से था कि ना तो मैं उसे रोक सका था और ना ही मोबाइल पर फ़ोन कर वापस बुला सका था।
इससे पहले मैं उसपर चिल्ला पाता, उसने मेरे सामने एक डिब्बा रखते हुए कहा, “यह लो शुगर फ्री रसगुल्ला।“
मेरे अंदर एक बिजली सी दौड़ गई। माँ ने इस बार मुझे मिठाई नहीं खिलाई थी, शुगर की वजह से। वह इस गर्मी में मेरे लिए बिना शक्कर वाली मिठाई लेने गई थी। बहुत मुश्किल से मैंने अपनी आँखों को बहने से रोका। मुझे कुछ ना कहते या करते देखकर माँ ने अपने हाथों से एक रसगुल्ला मेरे मुंह में दाल दिया। थोड़ी देर पहले इतना चिल्लाने वाला मैं, कुछ भी बिना कहे रसगुल्ला खाने लगा।
विनय पाण्डेय
१४ जून २०१५
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