बाहर बारिश हो रही थी। उस बारिश में दो बच्चे भीगते हुए नाच रहे थे। उनकी मस्ती बारिश की बूँदों के साथ इधर उधर छिटक रही थी। भीगने से बचने के लिए मैंने रेस्त्राँ के अंदर शरण ली। अंदर बैठते हुए एक चाय की मांग की। आज की घटनाओं से मेरा मन खिन्न हो चला था। उन दिनों कुछ भी अच्छा नहीं हो रहा था। फिर आज का दिन तो शायद मेरे लिए बहुत ही खराब था। चाय के इंतज़ार में बैठे मेरा दिमाग अपने जीवन की परेशानियों उलझ गया। वैसे तो अकेले बैठ कर बहुत सी अलग अलग कहानियाँ अपने आस पास देखने को मिलती है। परंतु रेस्त्राँ की उस भिड़ में भी मेरा मन कहीं और भटका हुआ था।
बेयरा के चाय लाने पर मेरी तंद्रा टूटी। चाय पीते हुए मैंने आस पास निगाह डाली तो ऐसा लगा मानो कुछ कहानियाँ आँखों के सामने चलचित्र की भाँति घूम रही थी। एक युगल जोड़ा जो देखने में ही प्रेमी लग रहें थे, अपने में खोए खोए से बैठे थे। वो सिर्फ़ एक दूसरे को प्यार से निहार रहे थे। उनके दिए हुए आर्डर से लग रहा था की वो कम पैसों में अधिक देर तक एक दूसरे के सान्निध्य का आनंद लेना चाहते थे। अब आजकल के सिनेमा हाल की टिकट भी इतनी महँगी हो गयी है, की रेस्त्राँ सस्ता लगने लगा है। धीरे धीरे चुभला चुभला कर खाते हुए वो एक दूसरे को निहार रहे थे।
मेरी बगल वाली सीट पर बैठा व्यक्ति अपनी बीवी को मनाने की कोशिश कर रहा था। शायद वह अपने मायके जाना चाहती थी किसी रिश्तेदार की शादी में। उनकी शादी को अभी अधिक दिन नहीं हुए थे। शायद इसीलिए वह रोकने की कोशिश कर रहा था। विवाह के कुछ वर्ष पश्चात तो मर्द मौके की तलाश में रहता है की कब बीवी मायके जाए।
एक तरफ तीन ऑफिस के कर्मचारी बैठ कर अपने मैनेजर की बुराई में लगे हुए थे। उनके हिसाब से कंपनी उनके मैनेजर को रख कर पैसे बर्बाद कर रही है। अगर उनकी बातों को माने तो वो बेचारे बहुत जुल्म झेल रहे थे। उनमें से एक तो नौकरी छोड़ने की बात तक कर बैठा था।
सामने बैठे दो उम्रदराज़ लोग किसी राजनीतिक विषय पर बहस में पड़े थे। उनकी बातों से लगता था की अवकाशप्राप्त जीवन का आनंद लेने के लिए उन्हें बस बहाना चाहिए था। बहस राष्ट्रीय स्तर से कब अंतर्राष्ट्रीय और कब मुहल्ले की राजनीति पर आ जाती, उसका उन्हें कोई ख्याल नहीं था। मानो उन्हें तो बस समय बिताना है। बहस तो सिर्फ़ एक बहाना था।
इन सब को देखकर मेरे होठों पर मुस्कुराहट आ गयी। ऐसा लगा मानो मैं स्वयं अपने जीवन के विभिन्न समय को देख रहा हूँ। बारिश में भीगते बच्चों में अपना बचपन, प्रेमी युगल में अपना अल्हड़पन, ऑफिस के लोगो में अपना युवा काल, विवाहित युगल में अपने दांपत्य जीवन की झलक देखने के बाद उन प्रौढ़ लोगो में अपना भविष्य दिख रहा था मुझे। अभी तक जिस समस्या को लेकर मैं इतना परेशान था, वो अब बहुत छोटी लगने लगी थी, जीवन के उस विस्तृत रूप को देखकर।
चाय पीकर जब मैं बाहर निकला तो बारिश रुक चुकी थी, आसमान साफ़ हो चला था, और साथ ही मेरे मस्तिष्क में घुमड़ते परेशानियों के बादल भी छंट चुके थे।
-- विनय कुमार पाण्डेय - १५ जनवरी, २०१५
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