"पापा, आज भी आप ऑफिस चल दिए? आपको याद हैं ना अपना वादा?"
"हाँ बेटी, अच्छे से याद है, शाम को घर आकार आपके स्कूल के प्रोजेक्ट के लिए हम एक अच्छा सा चित्र बना देंगे।"
"और पापा, मुझे वो आपके अख़बार वाले कार्टून जैसे चित्र नहीं चाहिए। मुझे वो अच्छे नहीं लगते हैं। पता नहीं क्यों आप ऐसे कार्टून क्यो बनाते है!"
"बेटी, तुम अभी छोटी हो, जब थोड़ी बड़ी हो जाओगी तब समझ जाओगी। वो कार्टून बच्चों के लिए नहीं बड़ों के लिए होते है।"
"पर बड़े लोग तो कार्टून पसंद नहीं करते! तभी तो अक्सर आपके बारे में भी बुरा भला कहते रहते है। फिर क्यों आप उनके लिए कार्टून बनाते हो?"
"बेटी, जहाँ कुछ लोग उसे पसंद नहीं करते, वही बहुत लोग मेरे व्यंग चित्रों को पसंद भी करते है। यह सिर्फ़ मेरा काम नहीं, बल्कि एक आवाज़ है, जिसे मैं दूर दूर तक पहुँचाना चाहता हु। एक ऐसी आवाज़ जिसे सुनकर लोगो के अंदर अज्ञानता और रूढ़िवादिता का अंधकार दूर हो। मेरे व्यंग चित्र उनकी उसी अज्ञानता पर प्रहार करते है, इसीलिए वो मुझसे नाराज होते है। परंतु धीरे धीरे उन्हें भी मेरे व्यंग चित्रों के अंदर की सच्चाई दिखने लगेगी। तब वो मेरे साथ खड़े होंगे, ना की मेरे ख़िलाफ।"
"आप क्या कह रहे है मेरी तो कुछ समझ मे नहीं आ रहा है। मैं बस इतना जानती हूँ की मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ, और इन लोगो की बातों से मुझे कभी कभी डर लगता हैं।"
"मैं भावनाओं मे बह गया था। इसीलिए कहा था की तुम कुछ और बड़ी हो जाओ, फिर समझ मे आएगा। और जहाँ तक डरने का प्रश्न है, बस इतना स्मरण रखना की जब मैं किसी को नुकसान नहीं पहुँचा रहा हूँ तो मुझे कोई क्यों नुकसान पहुँचाएगा? तुम अब स्कूल जाओ, मैं शाम को अपने वादे के मुताबिक तुम्हारे लिए ऐसी तस्वीर बनाऊँगा की तुम स्कूल प्रोजेक्ट मे सबसे अव्वल आओगी।"
उसकी बेटी स्कूल के प्रोजेक्ट मे अव्वल ना आ सकी, क्योंकि वो अपना वादा पूरा नहीं कर पाया। उसे शायद नहीं पता था की कुछ लोग अज्ञानता के अंधकार मे इतने गहरे डूबे हुए है, की वो इंसान को इंसान भी समझना भूल चुके है। उस शाम वो अपने पापा का इंतज़ार करती रही, पर उसके पापा नहीं आए, कभी नहीं आए....
- विनय कुमार पाण्डेय / १५ जनवरी, २०१५
"हाँ बेटी, अच्छे से याद है, शाम को घर आकार आपके स्कूल के प्रोजेक्ट के लिए हम एक अच्छा सा चित्र बना देंगे।"
"और पापा, मुझे वो आपके अख़बार वाले कार्टून जैसे चित्र नहीं चाहिए। मुझे वो अच्छे नहीं लगते हैं। पता नहीं क्यों आप ऐसे कार्टून क्यो बनाते है!"
"बेटी, तुम अभी छोटी हो, जब थोड़ी बड़ी हो जाओगी तब समझ जाओगी। वो कार्टून बच्चों के लिए नहीं बड़ों के लिए होते है।"
"पर बड़े लोग तो कार्टून पसंद नहीं करते! तभी तो अक्सर आपके बारे में भी बुरा भला कहते रहते है। फिर क्यों आप उनके लिए कार्टून बनाते हो?"
"बेटी, जहाँ कुछ लोग उसे पसंद नहीं करते, वही बहुत लोग मेरे व्यंग चित्रों को पसंद भी करते है। यह सिर्फ़ मेरा काम नहीं, बल्कि एक आवाज़ है, जिसे मैं दूर दूर तक पहुँचाना चाहता हु। एक ऐसी आवाज़ जिसे सुनकर लोगो के अंदर अज्ञानता और रूढ़िवादिता का अंधकार दूर हो। मेरे व्यंग चित्र उनकी उसी अज्ञानता पर प्रहार करते है, इसीलिए वो मुझसे नाराज होते है। परंतु धीरे धीरे उन्हें भी मेरे व्यंग चित्रों के अंदर की सच्चाई दिखने लगेगी। तब वो मेरे साथ खड़े होंगे, ना की मेरे ख़िलाफ।"
"आप क्या कह रहे है मेरी तो कुछ समझ मे नहीं आ रहा है। मैं बस इतना जानती हूँ की मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ, और इन लोगो की बातों से मुझे कभी कभी डर लगता हैं।"
"मैं भावनाओं मे बह गया था। इसीलिए कहा था की तुम कुछ और बड़ी हो जाओ, फिर समझ मे आएगा। और जहाँ तक डरने का प्रश्न है, बस इतना स्मरण रखना की जब मैं किसी को नुकसान नहीं पहुँचा रहा हूँ तो मुझे कोई क्यों नुकसान पहुँचाएगा? तुम अब स्कूल जाओ, मैं शाम को अपने वादे के मुताबिक तुम्हारे लिए ऐसी तस्वीर बनाऊँगा की तुम स्कूल प्रोजेक्ट मे सबसे अव्वल आओगी।"
उसकी बेटी स्कूल के प्रोजेक्ट मे अव्वल ना आ सकी, क्योंकि वो अपना वादा पूरा नहीं कर पाया। उसे शायद नहीं पता था की कुछ लोग अज्ञानता के अंधकार मे इतने गहरे डूबे हुए है, की वो इंसान को इंसान भी समझना भूल चुके है। उस शाम वो अपने पापा का इंतज़ार करती रही, पर उसके पापा नहीं आए, कभी नहीं आए....
- विनय कुमार पाण्डेय / १५ जनवरी, २०१५
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