उस बच्चे के मासूम से चेहरे को देखकर बरस्बर प्यार उमड़ आता था। ईश्वर द्वारा की गयी नाइंसाफ़ी पर मन थोड़ा खिन्न भी हो गया था। चार वर्ष की उस बच्ची के माता पिता एवं परिवार के बाकी सदस्य एक साथ भूकंप की चपेट में आकर उसे अनाथ बना चुके थे। मैंने उस बच्ची को चूम लिया। उसके प्यारे से चेहरे पर अचानक एक ख़ुशी की लहर सी दौड़ी पर मुझे देखकर बुझ गयी। शायद चूमने से उसे लगा मानो माँ वापस आ गयी हो। मेरे मन में दुविधा चल रही थी की अब उस बच्ची का क्या करूँ। एक ख्याल था की अपने साथ ले जाऊँ और अपनी बेटी की तरह प्यार दूँ। दूसरा ख्याल उसे किसी अनाथालय में पहुँचाने का था। अभी मैं सोच ही रहा था, की मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो कुछ निगाहें मुझे घूर रही है। मानो मेरी पीठ पर उन निगाहों से उत्पन्न होने वाली गरमी का अहसास हो रहा हो। इससे पहले की मैं पलट पाता, मुझे उनमें से एक की आवाज़ सुनाई दी। “आजकल छोटे बच्चों के साथ भी बलात्कार की घटनाएँ हो रही है।” दूसरी आवाज़ मानो मुझे सुनाने हेतु थोड़े ऊँचे स्वर में आई, “ठीक कहती हो। आजकल किसी का भरोसा नहीं कर सकते।”
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