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Showing posts from 2014

PK – The story behind the story!

I have seen the movie, and saw various comments on social media as well as news for both in support as well as against this movie. One group is claiming that the movie is showing Hindu religion in bad light, whereas another group that it shows true color of people taking advantage in the name of religion. I think both are completely wrong, and they have not understood the movie. I would encourage them to watch the movie again, and if they go after reading this post, it will help them understand the true story of PK.  God works in mysterious ways. God helps who trust God with the core of their heart. You can’t just perform some rituals and expect God to fulfill your wishes. You have to have faith in God. And your faith should not be selfish that if your wish is delayed, then you start questioning God. When you show true faith and devotion, God comes to you, show you the right path. Now all you have to do is walk on that path. This is exactly what PK story is all about. True faith a

अलविदा....

"अपना ख्याल रखना।" यही शब्द निकल पाए थे उसके मुख से। कहना तो वह बहुत कुछ चाहता था. परंतु वो सब बातें उसके हृदय में ही रह गयी। वह जनता था की शायद यह उनकी आख़िरी मुलाकात हो। परंतु हालात ऐसे हो चुके थे कि उनके मध्य अलगाव अवश्यंभावी हो चूका था।  "तुम भी" बस इतना ही कह पाई वह उत्तर में। उसके मन में भी ढेर सारी बातें घुमड़ रही थी। परंतु शायद दोनों के लिए हृदय से मुख का मार्ग बहुत दुर्गम हो चला था। उस मार्ग में उनके अहम ने कई रुकावटें पैदा कर दी थी। 

साई बाबा के दर्शन

पिछले दिनों मैं शिर्डी होकर आया. मेरे माता पिता यहाँ मुंबई आए हैं. उनको साथ लेकर हम सपरिवार शिर्डी गए थे. कार्यक्रम कुछ ऐसा बनाया की शनिवार सुबह निकालेंगे, रास्ते में नाशिक पड़ता है, वहाँ पर त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन कर, आगे शिर्डी जाएँगे. शिर्डी में हमने रात्रि विश्राम करने का सोचा था. फिर सुबह शनि सिग्नापुर होकर वापस मुंबई आने वाले थे. उम्मीद थी की इस तरह से दर्शन भी हो जाएँगे और अधिक भाग दौड़ भी नहीं होगी. 

एक पेड़ की चाह

मैं एक पेड़ हूँ। एक सुखा हुआ पेड़। आज अपनी आख़िरी घड़ियाँ गिनता हुआ इंतज़ार कर रहा हूँ आपने आख़िरी कर्तव्य के लिए। पहले शायद कुछ रहे हो, पर अब मेरे कुछ अरमान नहीं है। परंतु जब तलक जान बाकी है, कही ना कहीं कोई जिज्ञासा या लालसा घेर ही लेती है। आज भी मेरे मन में बार बार ये विचार आता हैं, की शायद अब मेरे जीवन में सिर्फ़ कट कर अग्नि के हवाले होना बाकी है। अग्नि प्रवेश कहाँ होगा! क्या मैं किसी गरीब के घर चूल्हे में जलकर उसके परिवार को भोजन देने का माध्यम बनूँगा? या किसी निर्दयी शिकारी के शिकार को पकाने के लिए जलूँगा। शायद गरीब मजदूरो के अलाव में जलकर उन्हें कड़ाके की ठंड से बचाऊँगा, या शायद किसी धनाढ्य के घर पर आतिशदान में जलते जलते उनकी एक दूसरे के प्रति हृदय में ईष्या रखते हुए मित्रता का ढोंग देखूँगा। शायद किसी के जीवन की अंतिम यात्रा का माध्यम बनते हुए चिता में जलूँगा या एक नए युग की शुरुआत की क्रांति के प्रतिक के रूप में मशाल बनकर जलूँगा।

Interstellar – The story behind the story!

I have to admit, when I came out of this movie, I was confused, and thinking hard to find a logical sense to the story. One thought which came to my mind was that my thinking ability is of 3 dimensions and that’s the reason I am not able to logically conclude this 5 dimension story. But few hours later, and few brainstorming sessions with myself, I came up with a somewhat logical explanation on what could have happened in the background, not shown to us, but may have leads to this story-line.  Here, in this story behind the story of Interstellar, I am presenting the story which may have happened in the normal timeline, without the event shown in the movie. These timelines will lead to a situation where the movie would have started. Read on, to check what has happened in the actual timeline. 

कर्मठता (A short story in Hindi)

" रामलाल , मैं पिछले तीन दिनों से देख रहा हूँ , तुम बारिश में भी आकर गाड़ियाँ धोते पोंछते हो। बारिश में गाड़ी पोंछी या नहीं , किसने देखा है ?" " बाबू साहब , ये मेरा काम है। अगर बहाने ही बनाने है तो बारिश क्या और धूप क्या। कोई और देखे या ना देखे , मेरी अंतरात्मा देख रही होगी , मेरा ईश्वर देख रहा होगा। ऐसे में मैं अपने काम में कोताही कैसे बरत सकता हु ?" रामलाल की कर्मठता ने मुझे झकझोर के रख दिया जिसने अभी अभी ऑफिस फ़ोन करके बारिश के बहाने से आज की छुट्टी की थी। विनय कुमार पाण्डेय 13 J uly 2014

चुनाव (Election - a short story in hindi)

आज चुनाव का दिन है। पिछले कुछ हफ़्तों से कान पक गए है चुनाव प्रचार सुन सुन कर। ढेरों पार्टियाँ और उतने ही ढेर सारी उनके वादे। ऐसा लगता है मानो सभी संकल्प लिए है देश में राम राज्य लाने के लिए। सब अपने को एक दूसरे से अच्छा साबित करने पर तुले है। इस प्रक्रिया में और कुछ हो ना हो, एक दूसरे की पोल जरूर खोल रहे हैं। मुझे आज काम पर भी जाना है। भले ही मैनेजर ने आज वोट देने के लिए थोड़ा देर से आने की अनुमति दे दी है, परंतु मैं भली भाँति जानता हूँ की देर से जाने पर शाम को देर तक बैठना ही पड़ेगा। मुझे वोट देने का कोई शौक नहीं है। परंतु पिछले कुछ दिनों से हमारे मुहल्ले के नौजवानों ने एक मुहिम चलाई थी, जिसके जरिए वो वोट देने के लिए लोगो को समझा रहे थे। पहले तो लगा कि ये किसी पार्टी के लिए प्रचार कर रहे है। आखिरकार आदत नहीं रही किसी को निःस्वार्थ कुछ करते देखने की। परंतु जब उनकी बातें सुनी और आग्रह कर के बैठने पर मजबूर करने के बाद उनका नुक्कड़ नाटक भी देखा तो एहसास हुआ की चुनाव में हिस्सा ना लेकर गलती करूँगा। उन नौजवानों को मैंने मन ही मन धन्यवाद किया और जैसा की उन्होंने समझाया था, किसी पार्

अमृत विष (Short story in Hindi)

होठों से गिलास लगा कर पीते वक़्त उसकी आँखों में वो सभी दृश्य एक चलचित्र की भाँति गुजर गए, जिनकी वजह से आज वो इस स्थिति में पहुँचा था। "तो क्या आफत आ गयी अगर तुमने मुझे किसी के साथ बिस्तर पर देख लिया? कभी अपने गिरेबान में भी झाँक कर देखो और कहो की तुमने कभी मुझे धोका नहीं दिया?" "भइया अब मैं क्या कहु, आप चाहे तो मैं कुछ पैसे आपको दे सकता हूँ, पर आपने ख़ुद बिना देखे हस्ताक्षर किया है तो मुझे दोष क्यों दे रहे है?" गिलास खाली हो चूका था और साथ में आँखों के आगे चलता चलचित्र भी रुक गया था। अब आँखे भारी हो रही थी, जिस्म भी शिथिल पड़ रहा था, परंतु उसकी आँखों में एक सुकून था। “अब मैं किसी को शिकायत का मौका नहीं दूँगा।” विनय कुमार पाण्डेय १७ मार्च २०१४

मुझे मांफ कर देना (a very short story in hindi - Mujhe Maaf Kar Dena)

"मुझे माफ़ कर देना", ये सुनते ही मानो मेरे अंदर एक करंट सा दौड़ गया। सारे मतभेदों के बावजूद, अपने पिता को ख़ुद से माफ़ी माँगते देख मानो मुझ पर घड़ों पानी पड़ गया हो। “आप ऐसा क्यों कह रहे है पापा, आप क्यों माफ़ी माँगेंगे? सारी गलती मेरी है और आप माफ़ी मांग रहे है?” मैं सिर्फ़ इतना ही कह पाया। उस क्षण ये अहसास हुआ की मेरे अंदर अपने पिता के लिए कितना प्रेम एवं सम्मान भरा था। मतभेदों की वजह से वो कुछ दब सा गया था। पर आज सारे बांध टूट गए थे। पिता के एक वाक्य ने मुझे अंदर तक झकझोर कर वो दबा हुआ प्रेम और सम्मान बाहर निकाल दिया था। अब और अनादर नहीं कर सकता मैं अपने पिता की। बस यही एक बात रह गयी थी मेरे दिलो दिमाग में। अब कोई मतभेद या दुराव भरी बात याद ना रही। जी चाहा की उनके पैरों पर गिरकर माफ़ी मांग लू। पर सिर्फ़ रोते हुए उनके गले ही लग पाया। दोनों की आँखों से बहते आंसू हमारे मतभेदों को जाने कहा बहा ले गए। - विनय कुमार पाण्डेय 26 मार्च 2014 Binay Kumar Pandey 26 March 2014

भय (Fear - a short story)

"क्या ये संभव है? मुझे तो यह संभव ही नहीं लगता है|" मैंने कह तो दिया, पर मुझे स्वयं अपनी आवाज़ खोखली लगी| मानो मैं स्वयं को बहलाने की नाकाम कोशिश कर रहा था| पर क्या करता| मुझे किसी भी हालत में पैसों का इंतजाम होता नहीं दिख रहा था| डॉक्टर ने साफ़ साफ़ कह दिया था की बिना पैसों के वो कुछ नहीं कर सकता| आज जब एक उम्मीद की किरण दिखायी दी भी तो उसमें खतरा बहुत था| उसके कितना भी कहने पर भी मुझे ये काम संभव नहीं लग रहा थ| मैं जानता था की भले ही यह काम संभव ना लगे, मेरे पास इसमें शामिल होने के अलावा कोई चारा नहीं था| जब मेरे प्रश्न की कोई प्रतिक्रिया ना हुई, तो मुझे हाँ करनी पड़ी| दस दिनों के बाद मुझे जेल में ख़बर लगी की इलाज ना होने की वजह से वो चल बसी| अब मेरी आँखों के सामने छाया अँधेरा छंट चुका था| मैंने लगभग संतोष की साँस ली| अब मुझे जेल या फाँसी की सजा का कोई भय नहीं था| मैं हंस पड़ा| दस दिनों पहले उसके इलाज ना होने के जिस भय ने मुझे जेल में डाला था, आज उस भय से छुटकारा मिल गया था| आज जेल में होते हुए भी मैं अपने को आज़ाद समझ रहा था| - विनय कुमार पाण्डेय 1 अप्रैल 20

अनाथ (Anaath, a short story in hindi)

उस बच्चे के मासूम से चेहरे को देखकर बरस्बर प्यार उमड़ आता था। ईश्वर द्वारा की गयी नाइंसाफ़ी पर मन थोड़ा खिन्न भी हो गया था। चार वर्ष की उस बच्ची के माता पिता एवं परिवार के बाकी सदस्य एक साथ भूकंप की चपेट में आकर उसे अनाथ बना चुके थे। मैंने उस बच्ची को चूम लिया। उसके प्यारे से चेहरे पर अचानक एक ख़ुशी की लहर सी दौड़ी पर मुझे देखकर बुझ गयी। शायद चूमने से उसे लगा मानो माँ वापस आ गयी हो। मेरे मन में दुविधा चल रही थी की अब उस बच्ची का क्या करूँ। एक ख्याल था की अपने साथ ले जाऊँ और अपनी बेटी की तरह प्यार दूँ। दूसरा ख्याल उसे किसी अनाथालय में पहुँचाने का था। अभी मैं सोच ही रहा था, की मुझे ऐसा प्रतीत हुआ मानो कुछ निगाहें मुझे घूर रही है। मानो मेरी पीठ पर उन निगाहों से उत्पन्न होने वाली गरमी का अहसास हो रहा हो। इससे पहले की मैं पलट पाता, मुझे उनमें से एक की आवाज़ सुनाई दी। “आजकल छोटे बच्चों के साथ भी बलात्कार की घटनाएँ हो रही है।” दूसरी आवाज़ मानो मुझे सुनाने हेतु थोड़े ऊँचे स्वर में आई, “ठीक कहती हो। आजकल किसी का भरोसा नहीं कर सकते।”

उम्मीद (Hope - a poem related to Indian Election 2014)

उम्मीद उनसे करे जो इंसान हो, इंसानियत के दुश्मनों से क्या उम्मीद करना। जिन हाथों ने ख़ुद चमन उजाड़ा है, उन हाथों से शहर बसाने की क्या उम्मीद करना। जो हवा आग की लपटों को और बढ़ाती हो, उस हवा से बादलों को लाने की क्या उम्मीद करना। उम्मीदों पर पानी फेर कर 49 दिनों में भाग लिए, आप पर अब और क्या उम्मीद करना। 10 सालों तक सिर्फ़ उम्मीद दिलाने वालों, अबकी बार हमसे भी न कुछ उम्मीद करना। सांप्रदायिकता भरी नफरत का सौदागर जिसका सरदार हो, उनसे अमन शांति की क्या उम्मीद करना। बंदर बाट जिनका रोज का काम हो, ऐसे तीसरे मोर्चे से भी क्या उम्मीद करना। गर लाना है राम राज्य, सुधारना है अपना समाज, तो दूसरों पर क्या उम्मीद करना। अब जो करना है हमें ख़ुद ही करना है, गर करना है तो ख़ुद से ही उम्मीद करना। - विनय कुमार पाण्डेय - 19 अप्रैल 2014

इंतकाम (Hindi short story)

आज उसे सामने देखकर आक्रोश नहीं दया आ रही थी। जिस सजा के वो काबिल था, किस्मत ने उसे और बड़ी सजा दे डाली थी। शायद मेरे जैसे और भी बहुत थे जिनकी बद्दुआ ने उसे उसकी आज की स्थिति तक पहुँचाया था। कभी वह कॉलेज का सबसे खतरनाक लड़का था, जिससे सभी डरते थे। उसकी हर बात हमारे लिए आदेश होता था। हर साल रैगिंग के नाम पर मुझ जैसे नए लड़कों का यौन उत्पीड़न करना, हमेशा हमसे पैसे या अगर हमारी कोई चीज पसंद आ जाए तो ले लेना। हमने सबकुछ चुपचाप सहा और जैसे तैसे करके अपनी पढ़ाई पूरी की। ऐसा लगता था की जीवन में फिर कभी उसकी सूरत नहीं देखनी पड़ेगी। किंतु किस्मत को कुछ और मंज़ूर था। पिछले आठ महीनों की मेहनत के बाद जब मैंने उसे खोज निकाला तो मेरे मन में सिर्फ़ एक ही ख्याल था - उसकी मौत। मेरे हिसाब से मौत भी उसके गुनाहों के लिए छोटी सजा थी। पर आज उसकी हालत देखकर मुझे लगा की किस्मत ने उसके पापों की सजा सच में मौत से भी बदतर तय की है। मैं वहाँ उसे उसकी इंच दर इंच मौत की और बढती हालत में छोड़ आया। मुझे यकीन था की मेरी पत्नी भी इसका समर्थन करेगी और इसे अपने साथ कॉलेज में हुए यौन उत्पीड़न का सही इंतकाम म

मुझे होली अच्छी लगती हैं (Hindi Story by me)

मुझे होली अच्छी लगती है। आज होलिका दहन है। मुझे तो ये भी नहीं पता की होलिका दहन क्या होता है। बस मुंबई की एक सोसाइटी से दूसरी सोसाइटी घूम घूम कर प्रसाद से पेट भरने में लगा हूँ। लोगो को कहते हुए सुना की ये जो आग लगा कर उसकी पूजा करते है, उसे होलिका दहन कहते है। अधिकतर लोग तो आजकल शायद अँग्रेज़ी में ही आपस में बातें करते है, इसलिए कुछ समझ नहीं आता। परंतु अभी भी कुछ लोग है, जो शायद पूरी तरह से अँग्रेज़ी ना बोल पाने की वजह से हिंदी में बातें करते है। वो लोग भी बीच बीच में कुछ शब्द अँग्रेज़ी के जोड़ ही देते है। उनकी आधी अधूरी बातों से मुझे होलिका दहन के बारे में पता चला। नहीं तो मुझ जैसे बस्ती में पैदा हुए और 10 वर्षों से वहाँ की गलियों में कभी खेलते कभी छोटा मोटा काम करते और कभी भीख माँगते गुजरी ज़िंदगी में ऐसी बातों का पता चलना मुश्किल होता है। कभी स्कूल नहीं गया, इसलिए सीखी है तो सिर्फ़ तरह तरह की गालियाँ। जबसे होश सम्हाला है, हर किसी को बिना वजह मेरी माँ बहन से रिश्ता जोड़ते हुए सुना है। लोगो के मुंह से अपना नाम कम सुना है, माँ बहन वाले अलंकार अधिक। मैं भी कहा अतीत में भटक गया। जैसा

भोर का तारा - कविता (Bhor Ka Tara, a poem)

भोर का तारा, प्रतिक है समाप्त होती रात्रि का। आने वाली सुबह का, नए दिन की शुरुआत का। जो लगभग समाप्त हो गया, उस अँधियारे युग का। एक आशा भरी नयी शुरुआत, नए प्रारंभ का। जीवन के आकाश पर जल्द ही बिखरने वाली नयी उम्मीदों का।

दुविधा (Hindi Story)

आज फिर से उसी दुविधा में खड़ा था मैं। ना जाने क्यों, ऐसा लगता था कि समय फिर से लौट आया है।  अगर मैं अपने बच्चो कि बात मान लेता तो ये उसके साथ किया हुआ मेरा दूसरा अन्याय होता। एक बार ऐसे ही अपने परिवार कि खातिर मैं उसके अरमानो कि बलि चढ़ा चुका था। पर फिर से उसे दोहराने कि मेरी कोई मंशा नहीं थी। आज फिर से वही प्रश्न खड़ा हुआ था।  परिवार कि मान मर्यादा, समाज का भय, बच्चो कि इज्जत कि चिंता, लोगो के ताने कसने का भय इत्यादि। पर मन अपने एक कोने से बार बार आवाज दे रहा था। "कब तक? कब तक इन खोखली बातो के प्रपंच में आकर तुम अपने ह्रदय कि नहीं सुनोगे? भाग्य ने एक और मौका दिया है अपनी पिछली भूल सुधरने का, क्या इस मौके को भी यु हीं गवा दोगे?" जिस प्रश्न का ऊत्तर मेरे पास आज से 35 वर्ष पूर्व नहीं था, आज कैसे होता? तब माता पिता का दबाव था, आज अपने ही बच्चो का। मेरे कानो में उनकी कही बाते गूंजने लगी। 

Sholay, one more time!

I wish you a very happy new year 2014. I watched Sholay 3D today, and decided to write my first post of 2014 about this movie. We all know Sholay! We have been knowing Sholay since its release or since we came to senses, whichever is later. Nothing new can be written about Sholay. We have been watching it, reading about it, discussing it, saying it all these years! I don’t think we can even remember how many times we have seen this movie. So, what would I write in a review of this movie? Just one line: GO AND RELIVE THE MAGIC OF SHOLAY IN THEATERS… AGAIN!!!!