"रामलाल,
मैं पिछले तीन दिनों से देख रहा हूँ, तुम
बारिश में भी आकर गाड़ियाँ धोते पोंछते हो। बारिश में गाड़ी पोंछी या नहीं,
किसने देखा है?"
"बाबू
साहब, ये मेरा काम है। अगर बहाने ही बनाने है तो बारिश क्या
और धूप क्या। कोई और देखे या ना देखे, मेरी अंतरात्मा देख
रही होगी, मेरा ईश्वर देख रहा होगा। ऐसे में मैं अपने काम
में कोताही कैसे बरत सकता हु?"
रामलाल की कर्मठता ने मुझे झकझोर के रख दिया जिसने अभी अभी ऑफिस फ़ोन करके
बारिश के बहाने से आज की छुट्टी की थी।
विनय कुमार पाण्डेय
13 July 2014
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