त्रैलोक्या तारिणी ✦ ऐतिहासिक साहित्यिक उपन्यास ✦ विनय कुमार पाण्डेय ‘चामुण्डा‘ समर्पण उन सभी स्त्रियों के नाम जो इस समाज की चुप्पी और अन्याय के बीच अपने हिस्से की चीख़ दबा गईं। और उन आवाज़ों के नाम, जो अब भी दीवारों के पीछे गूँजती हैं। --- 1850 के दशक के बंगाल में जन्मी एक नन्ही बालिका—त्रैलोक्या—समाज के काले कानूनों और पितृसत्ता की क्रूर परंपराओं के बीच पिसती है। विधवा बनकर बहिष्कृत, वेश्या बनकर बिकती है, और अंततः हत्यारिन बनकर इतिहास में दर्ज होती है। ‘त्रैलोक्या तारिणी’ एक ऐसी स्त्री की कालजयी कथा है जो अपने ज़ख्मों से एक युद्ध रचती है। यह उपन्यास पाठक को उस युग की गलियों में ले जाता है जहाँ हर स्त्री, या तो चुप रहती थी—या अपराधी बन जाती थी। सच्चाई, सहानुभूति और आक्रोश की एक त्रयी—जिसे पढ़ना केवल एक कहानी पढ़ना नहीं, बल्कि एक सवाल का सामना करना है। “क्या व्यवस्था भी हत्यारिन होती है?” --- प्रस्तावना: लेखक की ओर से जब मैंने पहली बार त्रैलोक्या तारिणी का नाम एक छोटे से समाचार आलेख में पढ़ा, तो वह एक अपराधिनी की तरह प्रस्तुत की गई थी—भारत की पहली महिला सीरियल किलर। ...
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