“मैं जा रही हूँ”, कहते हुए उसने उठने का उपक्रम किया। मैंने हिम्मत करके उसकी कलाई पकड़ ली। हमारे 2 वर्ष पुराने रिश्ते में मैंने पहली बार उसकी कलाई पकड़ी थी। वह एकबारगी चौक गई, और जल्दी से अपना हाथ छुड़ा लिया। “क्या करते हो? कोई देख लेगा तो?”, उसकी आवाज़ में स्पष्ट कंपन था।
“मुझे किसी की परवाह नहीं है। मैं तुम्हें इस तरह जाने नहीं दूंगा। चलो मेरे साथ कलकत्ता चलो।“ मैंने भी अपनी कांपती आवाज़ में कहा। ऊपर से मैं बहुत हिम्मत दिखा रहा था, परंतु अंदर ही अंदर एक द्वंद्व चल रहा था। कहा ले जाऊंगा? कैसे रखूँगा? मेरी तो अभी नौकरी भी नहीं लगी है। रहने को अपना घर भी नहीं है, गाव के कुछ लोगों के साथ बासा में रहने वाला उसे कहाँ रखूँगा।
“तुम पागल हो गए हो। पापा अपनी जान दे देंगे। मैं अपने परिवार को ऐसे नहीं छोड़ सकती हूँ। बस यह समझ लो कि इस जीवन में हमारा साथ यही तक था। बस एक विनती है; मेरी शादी से पहले कलकत्ता चले जाओ। मैं नहीं चाहती कि तुम उस वक़्त यहाँ रहो।“ यह कहते वक़्त उसकी आँखों से अविरल धारा बह रही थी। उसने आखिरी बार मुझे देखा, और उठकर चली गई।
मैं वही पर चुप चाप बैठा रह गया। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या करना चाहिए। क्या फिल्मी हीरो कि तरह उसे घर से भगा कर अपने साथ ले जाना चाहिए? यह ख्याल दिल को सुकून देने वाला तो था, पर दिमाग इसके विपरीत सलाह दे रहा था। एक गरीब बेरोजगार बेसहारा के साथ वह कहाँ जाएगी? कैसे रहेगी? दिमाग का कहना था कि जो भी हो रहा है, ठीक ही हो रहा है। उसकी सलाह के मुताबिक मुझे जल्दी ही गाव छोड़ देना चाहिए। दिल और दिमाग के इस अंतर्द्वंद्व में पता नहीं कितने घंटे वही बैठा रहा।
अंत – १
आज २ वर्ष गुजर चुके है उस घटना को। हम दोनों भाग कर कलकत्ता आ गए थे। मेरे मित्रों ने मुझे हर संभव मदद की और आज हम खुशी से अपने दिन गुजार रहे है। मुझे बड़ा बाज़ार के एक साड़ी के शोरूम में नौकरी मिल गई है, हमारे पास एक छोटा सा किराए का घर है। वह अब माँ बनने वाली है। उसके परिवार के लोग भी अब मान गए है। आज भी सोचता हूँ कि यदि उस दिन दिमाग की सुन कर वापस चला आया होता तो पता नहीं जिंदगी कैसी होती।
अंत – २
आज २ वर्ष गुजर चुके है उस घटना को। मैं वापस कलकत्ता आ गया था। सुना है उसकी शादी बहुत धूम धाम से हुई थी। उसका पति भी यही कलकत्ता आ गया है। दोनों खुशी से अपना जीवन गुजार रहे है। उसका पति बड़ा बाज़ार में एक साड़ी के शोरूम में काम करता है, और उनके पास रहने के लिए किराए का एक छोटा सा घर भी है। वह अब माँ बनने वाली है। मैं आज भी और लोगों के साथ बासा में साझा कमरे में रहता हूँ। छोटा मोटा काम कर जैसे तैसे अपना गुजर बसर कर रहा हूँ। आज भी सोचता हूँ कि यदि उस दिन दिल की सुन कर उसे अपने साथ लाया होता तो पता नहीं जिंदगी कैसी होती।
- विनय कुमार पाण्डेय
(२ जनवरी २०१७)
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