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Showing posts with the label Poem

रेखाएँ (A short poem in Hindi)

This poem is about the lines drawn by artists on paper. I am a comics fan, and this short poem is dedicated to the lines drawn by comics artists to create new and magical world on paper. Once these lines are drawn on black pages, these pages will tell you a story with heroes, villains, and the story will have its own world, with various emotions, drama etc. to entertain us. The artist simply creates a new world of possibilities with few lines. This message is expressed in the poem presented.  कुछ रेखाएँ कोरे कागज़ पर पड़कर, उस कागज़ का रूप बदल देती है।

तुशा – कहानियाँ भावनाओं की

आप सभी को नव वर्ष २०१५ की हार्दिक शुभकामनाएँ.  नव वर्ष के इस अवसर पर मैं अपना फेसबुक पेज तुशा आप लोगो के समक्ष रख रहा हूँ. मुझे लिखने का शौक़ हैं, परंतु कभी अपनी रचना को किसी के साथ साझा नहीं किया. गाहे बगाहे अपने ब्लॉग पर अपनी लिखी हुई कहानियाँ प्रेषित कर देता था. परंतु शायद ही किसी ने उन कहानियों को पढ़ा हो. गत वर्ष अक्टूबर के महीने में यह ख़याल आया की क्यों न फेसबुक पर एक पृष्ठ बनाया जाए, सिर्फ़ उन कहानियों के लिए. ब्लॉग पर तो कहानियों के अलावा और भी बहुत कुछ होता है. ऐसा प्रतीत हुआ की शायद मैं उन लिखे हुए शब्दों को राहत दूँगा, एक ऐसे मंच पर लाकर जहाँ बहुत से लोगो की पहुँच उन तक होगी. इससे पहले मुझे लगता था की शायद मेरा इस तरह से सभी के सामने उन कहानियों को लाना ठीक नहीं होगा. परंतु उन शब्दों में छिपे भावों को अगर मैं बंद रखता हूँ, तो यह उनके साथ अन्याय होगा. अपनी झिझक एवं शर्म को दरकिनार करते हुए यह फ़ैसला लिया गया की अब उन कहानियों को कैद में नहीं रखा जाएगा.

उम्मीद (Hope - a poem related to Indian Election 2014)

उम्मीद उनसे करे जो इंसान हो, इंसानियत के दुश्मनों से क्या उम्मीद करना। जिन हाथों ने ख़ुद चमन उजाड़ा है, उन हाथों से शहर बसाने की क्या उम्मीद करना। जो हवा आग की लपटों को और बढ़ाती हो, उस हवा से बादलों को लाने की क्या उम्मीद करना। उम्मीदों पर पानी फेर कर 49 दिनों में भाग लिए, आप पर अब और क्या उम्मीद करना। 10 सालों तक सिर्फ़ उम्मीद दिलाने वालों, अबकी बार हमसे भी न कुछ उम्मीद करना। सांप्रदायिकता भरी नफरत का सौदागर जिसका सरदार हो, उनसे अमन शांति की क्या उम्मीद करना। बंदर बाट जिनका रोज का काम हो, ऐसे तीसरे मोर्चे से भी क्या उम्मीद करना। गर लाना है राम राज्य, सुधारना है अपना समाज, तो दूसरों पर क्या उम्मीद करना। अब जो करना है हमें ख़ुद ही करना है, गर करना है तो ख़ुद से ही उम्मीद करना। - विनय कुमार पाण्डेय - 19 अप्रैल 2014

भोर का तारा - कविता (Bhor Ka Tara, a poem)

भोर का तारा, प्रतिक है समाप्त होती रात्रि का। आने वाली सुबह का, नए दिन की शुरुआत का। जो लगभग समाप्त हो गया, उस अँधियारे युग का। एक आशा भरी नयी शुरुआत, नए प्रारंभ का। जीवन के आकाश पर जल्द ही बिखरने वाली नयी उम्मीदों का।

My poetry – or my brief encounter with poetry during my school days!

I was in school, and I wrote a small poem in Hindi, on 31st October 1989, 3 years prior to the actual demolition. Those were the days when Ayodhya was main topic, and was every day on the front page of newspapers.  I saw that poem tucked somewhere in my old diary, and thought of sharing this. Its about request from God to all, for not taking the route of violence! But it seems we did not listen to our God, and went ahead with bloodshed of our brothers!