आज उसे सामने देखकर आक्रोश नहीं दया आ रही थी। जिस सजा के वो काबिल था, किस्मत ने उसे और बड़ी सजा दे डाली थी। शायद मेरे जैसे और भी बहुत थे जिनकी बद्दुआ ने उसे उसकी आज की स्थिति तक पहुँचाया था।
कभी वह कॉलेज का सबसे खतरनाक लड़का था, जिससे सभी डरते थे। उसकी हर बात हमारे लिए आदेश होता था। हर साल रैगिंग के नाम पर मुझ जैसे नए लड़कों का यौन उत्पीड़न करना, हमेशा हमसे पैसे या अगर हमारी कोई चीज पसंद आ जाए तो ले लेना। हमने सबकुछ चुपचाप सहा और जैसे तैसे करके अपनी पढ़ाई पूरी की। ऐसा लगता था की जीवन में फिर कभी उसकी सूरत नहीं देखनी पड़ेगी। किंतु किस्मत को कुछ और मंज़ूर था।
पिछले आठ महीनों की मेहनत के बाद जब मैंने उसे खोज निकाला तो मेरे मन में सिर्फ़ एक ही ख्याल था - उसकी मौत। मेरे हिसाब से मौत भी उसके गुनाहों के लिए छोटी सजा थी। पर आज उसकी हालत देखकर मुझे लगा की किस्मत ने उसके पापों की सजा सच में मौत से भी बदतर तय की है।
मैं वहाँ उसे उसकी इंच दर इंच मौत की और बढती हालत में छोड़ आया। मुझे यकीन था की मेरी पत्नी भी इसका समर्थन करेगी और इसे अपने साथ कॉलेज में हुए यौन उत्पीड़न का सही इंतकाम मानेगी।
विनय कुमार पाण्डेय
6 अप्रैल 2014
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