“क्या? तुम अपने कंप्यूटर पर कमांड लिख कर उसका प्रयोग करते हो? कौन से युग से हो भाई?” उपहास करते हुए समय यात्री ने कंप्यूटर पर बैठे वैज्ञानिक से कहा। “अपनी बात करो, तुम भी आदि काल के लगते हो जो ये माउस चला कर काम कर रहे हो” दूसरे समय यात्री ने पहले का मज़ाक उड़ाया। “पहले अपने आप को तो देख लो, उँगलियों से अपने इस छोटे से कंप्यूटर का उपयोग करने वाले, तुम भी बहुत उन्नत नहीं हो। मुझे देखो, मैं अपने कंप्यूटर को आदेश देता हूँ और वह मेरी बात सुनकर काम करता है।“ तीसरे समय यात्री ने दूसरे का मज़ाक उड़ाया। “जरा यहाँ भी देख लो तुम लोग, मैं सिर्फ़ सोच कर अपने कंप्यूटर को आदेश दे सकता हूँ। इसलिए मेरे समक्ष तुम सभी आदिमानव हो।“ चौथे समय यात्री ने भी अपनी तरक्की की डींग हाँकी। सभी पाँचवें समय यात्री की और देखने लगे, की वह क्या कहता है। पाँचवें समय यात्री ने सबको अपनी ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखते हुए पाया तो शांति से उत्तर दिया, “मैं स्वयं कंप्यूटर हूँ, मानव जाति ने तरक्की तो बहुत की, परंतु अपने घमंड की वजह से अपनी प्रजाति को बचा नहीं पाए।“ विनय पाण्डेय 11 जनवरी 2016
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