उम्मीद उनसे करे जो इंसान हो, इंसानियत के दुश्मनों से क्या उम्मीद करना। जिन हाथों ने ख़ुद चमन उजाड़ा है, उन हाथों से शहर बसाने की क्या उम्मीद करना। जो हवा आग की लपटों को और बढ़ाती हो, उस हवा से बादलों को लाने की क्या उम्मीद करना। उम्मीदों पर पानी फेर कर 49 दिनों में भाग लिए, आप पर अब और क्या उम्मीद करना। 10 सालों तक सिर्फ़ उम्मीद दिलाने वालों, अबकी बार हमसे भी न कुछ उम्मीद करना। सांप्रदायिकता भरी नफरत का सौदागर जिसका सरदार हो, उनसे अमन शांति की क्या उम्मीद करना। बंदर बाट जिनका रोज का काम हो, ऐसे तीसरे मोर्चे से भी क्या उम्मीद करना। गर लाना है राम राज्य, सुधारना है अपना समाज, तो दूसरों पर क्या उम्मीद करना। अब जो करना है हमें ख़ुद ही करना है, गर करना है तो ख़ुद से ही उम्मीद करना। - विनय कुमार पाण्डेय - 19 अप्रैल 2014
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