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Showing posts from October, 2015

समर शेष है

समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र, जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध। ना जाने क्यों दिनकर जी की यह कविता आज बहुत याद आ रही हैं। शायद यह कविता अधूरी है। आज सिर्फ़ व्याध नहीं है, बल्कि व्याध के साथ खड़े लोगो का हुजूम भी है, जो उन्हें शाबाशी देता है, और दूसरों को तटस्थ रहने या फिर बहलाने का काम भी करता है। वह स्वयं कुछ नहीं करते, बस व्याघ्र का पक्ष लेकर उन्हें रक्षक घोषित करवाने में मदद करते है। वह ऐसे लोग है, जिन्हे उत्तर प्रदेश की घटना एक दुर्घटना लगती है, और साथ में मीडिया पर इस दुर्घटना को सांप्रदायिक रंग देने का आरोप भी लगाते है। वह ऐसे भी लोग है जो इस आतंकवाद के लिए पीड़ित परिवार को ज़िम्मेवार ठहरा रहे है। मैं अधिक नहीं लिख पाऊँगा, क्योंकि मैं स्वयं तटस्थ वाली श्रेणी में आता हूँ। शायद मुझे आज इस सांप्रदायिकता और धर्मांधता के खिलाफ़ लड़ाई शुरू कर देनी चाहिए। पर मैं ठहरा एक साधारण इंसान, दो वक़्त की रोटी कमा कर अपने और अपने परिवार का पेट पालने वाला, यदि समर में कूद गया, तो मेरे परिवार का क्या होगा! इसी स्वार्थ की वजह से मैं यह अन्याय देखकर भी चुप रह जाता हूँ। यहा...