समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याघ्र,
जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध।
ना जाने क्यों दिनकर जी की यह कविता आज बहुत याद आ रही हैं। शायद यह कविता अधूरी है। आज सिर्फ़ व्याध नहीं है, बल्कि व्याध के साथ खड़े लोगो का हुजूम भी है, जो उन्हें शाबाशी देता है, और दूसरों को तटस्थ रहने या फिर बहलाने का काम भी करता है। वह स्वयं कुछ नहीं करते, बस व्याघ्र का पक्ष लेकर उन्हें रक्षक घोषित करवाने में मदद करते है। वह ऐसे लोग है, जिन्हे उत्तर प्रदेश की घटना एक दुर्घटना लगती है, और साथ में मीडिया पर इस दुर्घटना को सांप्रदायिक रंग देने का आरोप भी लगाते है। वह ऐसे भी लोग है जो इस आतंकवाद के लिए पीड़ित परिवार को ज़िम्मेवार ठहरा रहे है। मैं अधिक नहीं लिख पाऊँगा, क्योंकि मैं स्वयं तटस्थ वाली श्रेणी में आता हूँ। शायद मुझे आज इस सांप्रदायिकता और धर्मांधता के खिलाफ़ लड़ाई शुरू कर देनी चाहिए। पर मैं ठहरा एक साधारण इंसान, दो वक़्त की रोटी कमा कर अपने और अपने परिवार का पेट पालने वाला, यदि समर में कूद गया, तो मेरे परिवार का क्या होगा! इसी स्वार्थ की वजह से मैं यह अन्याय देखकर भी चुप रह जाता हूँ। यहाँ फेसबुक पर लिखना सिर्फ़ अपने मन को बहलाना होता है। मुझे पता है की यहाँ किए गए विरोध की कोई कीमत नहीं होती। इसलिए यहाँ लिखे गए अपने पोस्ट को मैं विरोध नहीं मानता और अपने को तटस्थ की श्रेणी में ही रखता हूँ।
मैं दोषी हूँ, तटस्थ रह कर सब कुछ देखने का, और सहने का दोषी। इतिहास मेरा भी अपराध लिखेगा। शायद इतिहास मेरी मजबूरी ना लिख पाए, पर अपराध अवश्य लिखेगा। मैं तब भी चुप था जब एक आतंकवादी के मरने पर जुलूस निकाल कर सैकड़ों की संख्या में शक्ति प्रदर्शन किया गया। मैंने तब भी आवाज़ नहीं उठाई जब लोगो के खाने पीने की पसंद पर रोकथाम लगाई गई, और आज भी चुप हूँ जब आतंकवादियों की भीड़ ने (जिन्हे मासूम बच्चे कहा जा रहा हैं) एक परिवार के मुखिया को बिना किसी वजह के पीट पीट कर मार डाला, और उस परिवार को बेसहारा बना दिया। और अपने स्वार्थ की वजह से शायद मैं भविष्य में भी चुप ही रहूँगा।
दिनकर जी, मैं माफ़ी चाहूँगा, कि स्कूल में पढ़ी आपकी कविता याद तो रही, पर आत्मसात करने की हिम्मत ना रही। मैं क्षमा प्रार्थी हूँ अपने देशवासियों से, जो आज भुक्त भोगी है इस धर्मांधता के, और शायद उम्मीद करते है की मुझ जैसे नागरिक आगे आएँगे। उम्मीद छोड़ दे, हम अपने परिवार की रक्षा करने में भी असमर्थ है, आपकी रक्षा कैसे करेंगे?
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