“आर्डर आर्डर”, कहते हुए जज ने चिड़िया से पूछा, “तुम्हारा वकील कौन है?”
“जी माई बाप, वकील करने की मेरी हैसियत नहीं है। इसलिए मैं खुद ही अपनी फरियाद रखना चाहती हूँ।“
“तुम चाहो तो कोर्ट तुम्हें एक वकील दे सकता है।“
“नहीं जज साहब, मुझे ऐसे वकील पर भरोसा नहीं होगा जो बिना किसी स्वार्थ के मेरे लिए मुकदमा लड़ेगा। ऐसा वकील ने यदि दूसरी तरफ से पैसे लेकर केस कमजोर कर दिया, तो मैं कहीं की नहीं रहूँगी।“ चिड़िया ने दृढ़ स्वर में कहा।
“तुम्हारे इस बेतुके इल्जाम पर मैं तुम्हें कोर्ट की अवमानना करने की सज़ा दे सकता हूँ, इसलिए मेरी कोर्ट में ऐसे बेहूदा इल्जाम लगाने से पहले सोच लेना। इसे अपनी पहली और आखिरी चेतावनी समझो।“ जज ने झल्लाए हुए शब्दों में कहा। शायद उसे चिड़िया की बात चुभ गई थी।
“जज साहब, जिस फरियाद को लेकर मैं यहाँ आई हूँ, वह सरकारी कर्मचारियों की लापरवाही और भ्रष्टाचार की वजह से हुआ है। इसलिए आप जिसे कोर्ट की अवमानना समझ रहे है, वह मेरे लिए सरकारी तंत्र पर अविश्वास है। यदि आप भी न्याय की जगह मुझे सज़ा देना चाहते है, तो दे दीजिए, पर मेरा अविश्वास फिर भी विश्वास में नहीं बदलेगा। यदि इसे विश्वास में बदलना चाहते है, तो मुझे इंसाफ दीजिए।“ चिड़िया अपने कथन पर अडिग थी।
जज को शायद ऐसे उत्तर की उम्मीद नहीं थी। उसने अपने स्वर को नम्र करते हुए कहा, “मेरे कोर्ट में न्याय ही मिलता है, पर कोर्ट की गरिमा का ध्यान रखना भी आवश्यक है। यदि तुम अपनी पैरवी स्वयं करना चाहती हो, तो कोर्ट इसकी इजाजत देता है।“ कहकर जज ने कार्यवाही शुरू करने का इशारा किया।
सरकारी वकील ने उठकर जज के सामने सरकार का पक्ष रखते हुए कहना शुरू किया।
“माई लॉर्ड, चिड़िया एक ऐसा केस लेकर आई है, जिसकी कोई बुनियाद ही नहीं है। सरकार ने सड़क के बीचों-बीच खड़े एक पेड़ को गिराने का निश्चय किया है, क्योंकि सड़क बनाते वक़्त नियमों का पालन नहीं किया गया था। कायदे से उस पेड़ को सड़क बनाते वक़्त ही काट देना चाहिए था। परंतु सड़क को जान बूझ कर दोनों तरफ अधिक चौड़ा कर, इस पेड़ को सड़क के बीचोबीच खड़े रहने दिया गया। बाद में सरकारी पैसे से इस पेड़ का रखरखाव भी चलता रहा। नियम सड़क के रखरखाव पर पैसा खर्च करने का है, पर उसे तोड़ मरोड़ कर उस पैसे को पेड़ के रखरखाव पर खर्च किया गया। उस अनियमितता की जांच चल रही है, और इस पेड़ तो तब तक के लिए सरकारी कब्जे में रखा गया है। सरकार का जो पैसा इस पेड़ के रखरखाव पर खर्च हुआ है, उसकी भरपाई के लिए इस पेड़ को काट कर बेचने पर भी विचार चल रहा है। पर उस केस का इस चिड़िया के केस से कोई लेना देना ना होते हुए भी इसने यहाँ मुआवजे के लिए अर्जी दे दी है। अब सड़क पर बने पेड़ और उसके भ्रष्टाचार के मामले में इसे मुआवजा क्यों दिया जाए? इसलिए मेरी आपसे यही गुजारिश है कि इस मामले को अभी खारिज कर दे।“
जज स्वयं भी तनिक उलझन में था, क्योंकि सरकारी वकील की तरह उसे भी सड़क और पेड़ के घोटाले में चिड़िया का मुआवजा मांगना समझ में नहीं आया था। उसने उलझन भरी निगाहों से चिड़िया को देखा, और पूछा, “क्या तुम सरकारी वकील की इस दलील का उत्तर देना चाहोगी?”
चिड़िया ने शांत भाव से जवाब दिया, “जी हुजूर, अवश्य देना चाहूंगी। मुझे उस घोटाले से कोई सरोकार नहीं है पर सरकार द्वारा उस पेड़ को जब्त कर लेने से मेरा घर उजड़ने के कगार पर आ गया है। और मैं उसी के मुआवजे की मांग कर रही हूँ।“
सरकारी वकील ने तुरंत बीच में टोका, “तुम्हारे घर का सरकार से क्या रिश्ता है जो सरकार मुआवजा दे? तुमने अपनी मर्जी से उस पेड़ पर घर बनाया था। अब यदि पेड़ गैरकानूनी है तो सरकार इसके लिए कैसे ज़िम्मेवार हो सकती है?”
चिड़िया ने शांत भाव से उत्तर दिया, “जैसे रेलगाड़ी के दुर्घटना ग्रस्त होने पर यात्रियों को मुआवजा मिलता है, जबकि उन्होंने भी सरकार के कहने पर टिकट नहीं लिया होता है, बल्कि अपनी मर्जी से सफर कर रहे होते है, वैसे ही यहाँ भी मुझे मुआवजा मिलना चाहिए।“
इस बार जज ने स्वयं कहा, “पर रेल दुर्घटना में सरकार की जिम्मेवारी होती है, क्योंकि रेल चलाने और सभी यात्रियों को सुरक्षित रखने की जिम्मेवारी सरकार की है। तुम्हारे केस में सरकार की जिम्मेवारी कैसे हो सकती है?”
“हुजूर, जैसे रेल और यात्रियों की सुरक्षा की जिम्मेवारी सरकार की है, वैसे ही जिस घोटाले की वजह से उस पेड़ को जब्त किया गया है, उसे रोकने की जिम्मेवारी भी सरकार की थी, जिसे निभाने में कोताही हुई है और जिस कोताही की वजह से आज मैं बेघर होने के कगार पर हूँ।“
चिड़िया ने कहना जारी रखा, “आज उस पेड़ पर हमने घर बनाया, तो क्यों बनाया? क्योंकि उस पेड़ को हम सभी फलता फूलता देख रहे थे। सरकार उसे उखाड़ने की बजाय उसपर और खर्च कर रही थी। ऐसे में हमने क्या गलती की जो उस पेड़ को अपना लिया? यदि सड़क बनते वक़्त उस पेड़ को उखाड़ फेंका होता, तो हम कही और घर बनाते, और आज शांति से रह रहे होते। पर सरकार की जो जिम्मेवारी थी, उसने जान बूझकर पेड़ के मालिक को फ़ायदा पहुंचाने के लिए उस जिम्मेवारी से मुख मोड लिया, और इस घोटाले में शामिल हो गए। समय बीतता गया, सरकार ने इस पेड़ के मालिक को कई कर्ज दिये, इस पेड़ के फलो को बेचने के लिए, विदेशों में भेजने के लिए, सिंचाई के लिए, कटाई के लिए और पता नहीं कितने सारे। जब सरकार ने लगातार उस पेड़ पर इतना भरोसा दिखाया, तो हमने अपने परिवार को सुरक्षित रखने के लिए इस पेड़ पर भरोसा किया तो क्या गलत किया? अब आज पेड़ का मालिक सरकार के पैसे लेकर विदेश भाग गया है, तो क्या उसका भुगतान हमें और हमारे परिवार को करना पड़ेगा? अब आप ही बताए जज साहब, क्या सरकार कई वर्षों से अपनी जिम्मेवारी निभाने में विफल नहीं हुई? क्या हमारी आज की हालात की ज़िम्मेवार सरकार नहीं है? क्या रेल दुर्घटना की तरह यहाँ भी हमें मुआवजा नहीं मिलना चाहिए?” कहते कहते चिड़िया की सांस फूल गई।
जज ने सरकारी वकील की तरफ देखा, और सरकारी वकील ने भी गला साफ करते हुए कहना शुरू किया, “जो यह कह रही है, वह एक कहानी है। कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत सरकार इन्हें मुआवजा दे। माई लॉर्ड, मैं एक बार फिर आपको दरख्वास्त करूंगा, कि इस बेतुके केस को यही रद्द कर दे।“
जज ने अपना चश्मा निकाला, उसे रुमाल से साफ करने के बाद पुनः पहन कर चिड़िया को देखते हुए कहा, “मैं तुम्हारी बात से सहमत हूँ, और यह मानता हूँ कि तुम बिना अपनी किसी गलती के आज अपने परिवार के लिए घर एवं रोटी की मोहताज हो सकती हो। मैं यह भी मानता हूँ कि तुम्हें इस स्थिति में पहुंचाने में सरकारी तंत्र की नाकामी एवं भ्रष्टाचार का बहुत बड़ा हाथ है। पर मैं यह सब जानते हुए भी तुम्हें कानूनन मुआवजा नहीं दिला सकता। हमारे कानून में ऐसे किसी भी मुआवजे का कोई प्रावधान नहीं है। जब तक तुम्हारा नुकसान सीधे सरकार से ना जोड़ा जा सके, तब तक कानूनन मैं तुम्हें इंसाफ नहीं दिला सकता। मैं जनता हूँ कि आज मैं जज होते हुए भी कानून के हाथों इंसाफ ना दिला पाने के लिए मजबूर हूँ। इसलिए इस केस को रद्द करने के साथ साथ, मैं अपने पद से इस्तीफा भी देता हूँ। यदि मैं इंसाफ के हक़ में फैसला नहीं सुना सकता, तो मुझे इस कुर्सी पर बैठे रहने का कोई हक़ नहीं है। मुझे क्षमा कर देना चिड़िया, मैं तुम्हें कोई मुआवजा नहीं दिला सकता।“ कहते हुए जज की आँखों में नमी छा गई थी। उसने फिर अपने चश्मे को उतारा, पर इस बार रुमाल से सिर्फ चश्मे को नहीं, बल्कि अपनी आँखों को भी पोंछते हुए केस के समाप्ति की घोषणा कर दी।
चिड़िया अपनी आंखों में नमी लिए भारी कदमों से बाहर को चल दी। उसके सामने अपने परिवार के पालन पोषण कि गंभीर समस्या मुंह बाए खड़ी थी, और अब कहीं से किसी मदद की उम्मीद भी नहीं रही। उसे अपने जीवन का अभी तक किया हर काम बेवजह लग रहा था। अपने परिवार को उस पेड़ पर घर दिलाने के लिए उसने बहुत मेहनत की थी और आज वह मेहनत बेमानी हो गई थी। उसे अपने भविष्य में अब सिर्फ अंधकार ही अंधकार दिखाई दे रहा था। शायद उसके मेहनत करने का तरीका ही गलत था। उसे भी पेड़ के मालिक की तरह घोटाले करने चाहिए थे, गबन करना चाहिए था। फिर शायद उसके परिवार को आज का दिन ना देखना पड़ता। उसकी ईमानदारी एवं सच्चाई आज उसके लिए मुसीबत बन गई थी। उसने अब निश्चय कर लिया कि इस अंधेरे से उबरने के लिए जो मुनासिब होगा, वह सब करेगी। चाहे वो चोरी कहलाए, घोटाला कहलाए या फिर गबन कहलाए। उसे अंधेरे से उजाले तक का रास्ता दिखने लगा था। अब उसकी आँखों में नमी कि जगह लोमड़ी जैसी चमक आ गई थी, और वह अपने शिकार को ढूँढने निकल पड़ी।
विनय कुमार पाण्डेय
25 फरवरी 2018
Comments