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Showing posts from November, 2014

एक पेड़ की चाह

मैं एक पेड़ हूँ। एक सुखा हुआ पेड़। आज अपनी आख़िरी घड़ियाँ गिनता हुआ इंतज़ार कर रहा हूँ आपने आख़िरी कर्तव्य के लिए। पहले शायद कुछ रहे हो, पर अब मेरे कुछ अरमान नहीं है। परंतु जब तलक जान बाकी है, कही ना कहीं कोई जिज्ञासा या लालसा घेर ही लेती है। आज भी मेरे मन में बार बार ये विचार आता हैं, की शायद अब मेरे जीवन में सिर्फ़ कट कर अग्नि के हवाले होना बाकी है। अग्नि प्रवेश कहाँ होगा! क्या मैं किसी गरीब के घर चूल्हे में जलकर उसके परिवार को भोजन देने का माध्यम बनूँगा? या किसी निर्दयी शिकारी के शिकार को पकाने के लिए जलूँगा। शायद गरीब मजदूरो के अलाव में जलकर उन्हें कड़ाके की ठंड से बचाऊँगा, या शायद किसी धनाढ्य के घर पर आतिशदान में जलते जलते उनकी एक दूसरे के प्रति हृदय में ईष्या रखते हुए मित्रता का ढोंग देखूँगा। शायद किसी के जीवन की अंतिम यात्रा का माध्यम बनते हुए चिता में जलूँगा या एक नए युग की शुरुआत की क्रांति के प्रतिक के रूप में मशाल बनकर जलूँगा।

Interstellar – The story behind the story!

I have to admit, when I came out of this movie, I was confused, and thinking hard to find a logical sense to the story. One thought which came to my mind was that my thinking ability is of 3 dimensions and that’s the reason I am not able to logically conclude this 5 dimension story. But few hours later, and few brainstorming sessions with myself, I came up with a somewhat logical explanation on what could have happened in the background, not shown to us, but may have leads to this story-line.  Here, in this story behind the story of Interstellar, I am presenting the story which may have happened in the normal timeline, without the event shown in the movie. These timelines will lead to a situation where the movie would have started. Read on, to check what has happened in the actual timeline. 

कर्मठता (A short story in Hindi)

" रामलाल , मैं पिछले तीन दिनों से देख रहा हूँ , तुम बारिश में भी आकर गाड़ियाँ धोते पोंछते हो। बारिश में गाड़ी पोंछी या नहीं , किसने देखा है ?" " बाबू साहब , ये मेरा काम है। अगर बहाने ही बनाने है तो बारिश क्या और धूप क्या। कोई और देखे या ना देखे , मेरी अंतरात्मा देख रही होगी , मेरा ईश्वर देख रहा होगा। ऐसे में मैं अपने काम में कोताही कैसे बरत सकता हु ?" रामलाल की कर्मठता ने मुझे झकझोर के रख दिया जिसने अभी अभी ऑफिस फ़ोन करके बारिश के बहाने से आज की छुट्टी की थी। विनय कुमार पाण्डेय 13 J uly 2014