कुछ महीनों पूर्व मैं एक बंगला फिल्म “राजकाहिनी” देखने गया था। फिल्म बहुत अच्छी थी, और अब हिन्दी में भी बन रही है। मेरी ओर से सबको हिन्दी वाली फिल्म देखने की सलाह है। पर यह पोस्ट उस फिल्म या उसकी कहानी से संबन्धित नहीं है। उस फिल्म के अंत में हमारे राष्ट्र गान “जन गण मन” का असली बंगला गीत दिखाया गया है। जन गण मन को पहले बंगला में ही लिखा गया था। सिनेमा हाल में जब यह गाना शुरू हुआ, तब किसी को इसके जन गण मन होने का एहसास नहीं था। दरअसल यह गाना “जन गण मन” से शुरू नहीं होता है। दूसरी पंक्ति आते आते लोगों को पता चलने लगा, और असल राष्ट्र गान ना होते हुए भी लोग एक एक करके खड़े होने लगे। फिल्म का अंत बहुत दुखद और चौका देने वाला है। इसलिए गीत को पहचानने में थोड़ी देर लगी, पर 3-4 पंक्तियाँ होते होते सभी खड़े हो चुके थे। मैं खुद भी खड़ा हुआ था। तब सूप्रीम कोर्ट का कानून भी नहीं था और यह असल राष्ट्र गान भी नहीं था। पर पता नहीं क्यों, अंदर से इच्छा हुई खड़े होने की, और इस गीत को सम्मान देने की। भले ही यह असल राष्ट्र गान ना सही, पर अर्थ तो वही थे।
अब आते है कल दंगल से वक़्त पर। दंगल में एक दृश्य है, जन गीता कॉमन वैल्थ में विजेता बन जाती है तो राष्ट्रीय गान की धुन बजाई जाती है। पर फिल्म में जो संवाद है, उसमें इसे धुन ना कहकर राष्ट्रीय गान बजाया जाएगा कहा गया। जैसे ही यह संवाद आया, सभी लोग एक साथ उठकर खड़े हो गए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार फिल्म के अंदर यदि राष्ट्र गान होता है, तो लोगों को खड़े होने की बंदिश नहीं है। पर जो मैंने देखा, और स्वयं भी खड़ा हुआ, वह राष्ट्र गान के लिए सम्मान कम और डर अधिक था। फिल्म में इसे बॅकग्राउंड म्यूजिक की तरह बजाया गया है, अधिकतर हिस्से बहुत धीमी आवाज़ में सुनाई देते है। पर उससे किसी की क्या लेना देना? कोई भी बैठे रहकर खतरा नहीं मोल लेना चाहता है। आखिरकार, 2 मिनट खड़े होने में क्या जाता है। मैं सोचता हूँ कि यदि सुप्रीम कोर्ट का आदेश ना होता, तो क्या सभी तुरंत खड़े हो जाते? शायद नहीं, शायद राजकाहिनी कि भांति लोग एक एक करके खड़े होते। शायद तब डर नहीं सम्मान कि वजह से खड़े होते।
मुंबई में ही मैंने राष्ट्र गान को ऐसे सम्मान से जहां किसी दूसरी भाषा में बजने पर भी लोग खड़े हो जाते है, नीचे जाकर एक डर में बदलते देखा, जब राष्ट्र गान नहीं भी बज रहा हो तब भी लोग डर से खड़े हो जाते है। बहुत दुख हुआ कि हमने अपनी राष्ट्रियता और देश प्रेम को कानूनन लागू करके शायद असल राष्ट्रियता को खो दिया है। मेरे लिए तो आज भी अपने राष्ट्र गान को सम्मान देना किसी कानून का मोहताज नहीं है। पर शायद अन्य लोगों के लिए होगा, इसीलिए इस कानून को हमपर डाला गया है। पर मुझे वह राजकाहिनी के बंगला राष्ट्र गान जैसा सम्मान पसंद है अपने देश के राष्ट्र गान के लिए, ना कि दंगल का डर वाला सम्मान।
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