Skip to main content

Net Neutrality or अंतर्जाल (नेट) निष्पक्षता


आप लोगो ने यह शब्द कई जगह पढ़ा या सुना होगा। आजकल भारत में यह शब्द सोशल मीडिया पर छाया हुआ है। अर्थात ट्रेडिंग कर रहा है। लोग इसके बारे में फेसबुक या ट्विटर पर पोस्ट कर रहे है। हमारी ट्राई ने भी अपने वेब साइट पर लोगो से सलाह माँगी है। अँग्रेज़ी में बहुत लेख मिल जाएँगे इसके बारे में। सोचा क्यों न हिंदी पढ़ने वाले लोगो के लिए साधारण भाषा में इसकी व्याख्या कर दी जाये। शायद यह जानकारी आपके लिए उपयोगी हो। 

नेट निष्पक्षता क्या है?


नेट निष्पक्षता का अर्थ है, एक मुक्त इंटरनेट, जिसके किसी भी हिस्से को देखने/पढ़ने/सुनने के लिए सिर्फ़ एक प्रकार के साधन की आवश्यकता हो। अर्थात डाटा, किसी भी प्रकार का डाटा, समान माना जाये, और उसमें इसलिए कोई भेद ना किया जाये की वह कमेंट है, या वीडियो है या फोटो है। साधारण शब्दों में, आज आप अपने घर पर इंटरनेट लेते है, या फिर अपने मोबाइल फ़ोन पर इंटरनेट लेते है। आप उसके लिए पैसे देते है। घर पर ब्रॉडबैंड के अलग अलग डाटा रफ़्तार यानि स्पीड के पैकेज है, आप शायद वाई फाई भी लगा ले। वैसे ही मोबाइल पर भी कई पैकेज है, 2जी 3जी या फिर जल्द ही आने वाला एलटीई 4जी। एक बार हमने पैकेज ले लिया, उसके पश्चात हम उस इंटरनेट पर क्या करते है, उससे हमारे सर्विस प्रोवाइडर को कोई मतलब नहीं होता। हम चाहे तो यू ट्यूब पर वीडियो देखे, गाने सुने, व्हाट्स एप्प या फेसबुक पर दोस्तों से बातचीत करे। वीडियो चाट या फिर स्काइप पर VOIP वाले कॉल करे। हमारे फ़ोन वाले या ब्रॉडबैंड वाले हमें सिर्फ़ इंटरनेट इस्तेमाल करने के लिए पैसे लेते है। यह है आज की परिस्थिति। और यही है नेट निष्पक्षता। 


क्या बदल रहा है?


यदि आज का नेट निष्पक्ष है, फिर हम सभी इसके बारे में बात क्यों कर रहे है? क्या यह बदल रहा है? जी हाँ, यह बदल रहा है। हमारे देश की टेलिकॉम कंपनियाँ चाहती है की वह हमें अलग अलग तरह के पैकेज बेचे। वह हमारे डाटा इस्तेमाल करने के अलावा वह डाटा कैसे इस्तेमाल होगा, उसके पैसे भी लेना चाहते है। जैसे की WhatsApp के लिए अलग पैकेज, Facebook के लिए अलग पैकेज, और YouTube के लिए अलग पैकेज। वैसे ही और भी अलग अलग पैकेज मिलेंगे, अलग कार्यो के लिए। अभी टेलिकॉम कंपनियों ने पैकेज बनाए नहीं है। पर वह इंतज़ार कर रहे है ट्राई के आदेश का। फिर शायद आपको सोशल नेटवर्किंग के लिए अलग पैसे देने पड़े, गाना सुनने के लिए अलग और वीडियो देखने के लिए अलग। 

आपको एक बात और बता दे, जैसे आज आप एक वेब साइट से दूसरे पर एक लिंक पर क्लिक करके चले जाते है, वैसे आने वाले दिनों में जाना आपकी जेब के लिए खतरनाक रहेगा। जब अलग अलग पैकेज रहेंगे, तो आपको सावधानी बरतनी पड़ेगी। यदि आपने वीडियो का पैकेज नहीं लिया है, और फेसबुक के किसी लिंक पर क्लिक करके यू ट्यूब के वीडियो को चला दिया, तो बिना पैकेज वाला चार्ज लग जाएगा। और आपको पता होगा की बिना पैकेज वाला नेट का चार्ज कैसे लगता है। पता भी नहीं चलता और ढेरों पैसे चार्ज हो जाते है। कितना भी सर फोड़ ले हेल्प डेस्क के साथ, चार्ज वापस नहीं होता। कहा जाता है की आपने नेट इस्तेमाल किया है। अब कहा और कैसे, यह बताना उनका काम नहीं है। 

इसकी एक और बड़ी समस्या होगी पक्षपात। आपकी फ़ोन कंपनी यदि चाहे तो वह किसी एक कंपनी की वेब साइट जल्दी खुलेगी और दूसरे वही सुविधा देने वाली कंपनी की साइट देर से खुलेगी, या फिर उसके लिए अलग से पैसे देने पड़ेंगे। जैसे अभी रिलायंस ने internet.org के नाम से एक सुविधा शुरू की है, जिसमे कुछ साइट ही खुलती है। यह वही साइट होगी, जिन्होंनें रिलायंस को पैसे दिये होंगे। एयर टेल भी एक नया प्लान ला रही थी, जिसमे फ्लिपकार्ट खुलेगी, परंतु अन्य साइट के लिए पैसे देने पड़ेंगे।

क्या यह परिवर्तन सही है? 


इसमें बहुत मतभेद है। फ़ोन कंपनियों के अनुसार यह सही है, और बहुत से लोगो के अनुसार यह गलत है। आपके सामने दोनों मत रख देता हूँ।

टेलिकॉम कंपनियों का कहना है कि:
  • अलग अलग तरीके से इस्तेमाल किए जाने वाली इंटरनेट सुविधाओं की वजह से उनका लाभ कम हो रहा है। जैसे की लोगो ने SMS भेजना लगभग बंद कर दिया है, अब Whatsapp या फिर वैसी ही दूसरी सुविधाओं का प्रयोग कर रहे है। फिर अब Whatsapp, फेसबुक जैसी कई ऐप्लीकेशन लोगो को कॉल करने की सुविधा भी दे रही है। इसलिए जो कॉल मोबाइल फ़ोन से होता था, और फ़ोन कंपनी को पैसे मिलते थे, वह कॉल अब इंटरनेट द्वारा हो रहा है। इसलिए उन्हें अलग अलग सुविधाओं के इस्तेमाल के लिए अलग अलग पैसे मिलने चाहिए। 
  • आवाज़, गाना, वीडियो के लिए बहुत अधिक रफ़्तार एवं डाटा इस्तेमाल होता है। इनके लिए सिर्फ़ डाटा एवं रफ़्तार ही नहीं, बिना अस्थिरता के डाटा का प्रवाह निश्चित करना पड़ता है। दूसरे प्रकार के इंटरनेट के इस्तेमाल में यह कठिनाइयाँ नहीं आती। इसलिए उन्हें अलग अलग तरीके की सुविधाओं के लिए अलग पैसे मिलने चाहिए। 
  • टेलिकॉम कंपनियों के अनुसार प्रत्येक सुविधाओं में यह होता रहा है, और वह कुछ नया नहीं मांग रहे है। आप फ़ोन करते है, तो किस नंबर पर फ़ोन कर रहे है, उसके हिसाब से पैसे देते है। आप फ़िक्स्ड लाइन या लैंड लाइन पर फ़ोन करे तो कॉल के पैसे अधिक लगते है। यदि आपको याद हो तो किसी जमाने में एस टी डी के पैसे भी अधिक ही लगते थे। वैसे ही घर पर पानी या फिर बिजली देते वक़्त हमें उसके इस्तेमाल के लिए अलग तरीके से पैसे देने पड़ते है। यदि हम उनका इस्तेमाल घर पे अपने लिए कर रहे है, तो अलग मूल्य है और यदि उसे अपने व्यापार में इस्तेमाल करते है तो अलग मूल्य देना पड़ता है। घर पर भी यदि आप एक पूर्व निर्धारित सीमा से अधिक बिजली इस्तेमाल करते है तो अधिक पैसे देने पड़ते है। केबल टीवी के लिए भी पहले एकमुश्त पैसे देते थे, परंतु अब अलग अलग पैकेज के हिसाब से पैसे देने पड़ते है। यह मूल्यांकन कई पहलुओं पर ध्यान देकर निर्धारित किया जाता है, एवं इससे कंपनियों को अपने ग्राहकों को उच्च कोटी की सुविधा देने में आसानी होती है। यदि मूल्यांकन का यह रूप अन्य सभी सुविधाओं में मान्य है तो फिर इंटरनेट में क्यों नहीं?
विरोधियों का कहना है कि:
  • हम जो कुछ भी इंटरनेट पर देखते, सुनते, लिखते, पढ़ते या कहते है, उसमें टेलिकॉम कंपनियों का कोई योगदान नहीं होता। अलग अलग वेब साइट टेलिकॉम कंपनियों ने नहीं बनाई है। उन्होंने सिर्फ़ पहले से ही उपस्थित फ्रिक्वेन्सी को लेकर हमें उसपर इंटरनेट की सुविधा दी है। उसके लिए हम उन्हें पैसे दे रहे है। हम जितना डाटा इस्तेमाल करते है, वह हमसे उतना पैसा लेती है। अब वो चाहते है की किसी और की बनाई हुई सुविधाओं से उन्हें मुनाफ़ा मिले। यह गलत है। 
  • इंटरनेट एवं अन्य सुविधाओं में समानता नहीं है। यदि पानी या बिजली की बात की जाये तो वह निर्मित की जाती है। सिर्फ़ भेजी नहीं जाती, इसलिए हम जब उनके लिए पैसे देते है, तो निर्माण कार्य के पैसे भी उसमें शामिल होते है। साथ में व्यावसायिक रूप में इस्तेमाल करते वक़्त हमें बिजली और पानी अधिक जरूरत पड़ती है, जिसके लिए अधिक पैसे देने पड़ते है। इंटरनेट में फ़ोन कंपनियाँ हमें सिर्फ़ इंटरनेट के डाटा को भेजने का काम करती है। वह कुछ भी निर्मित नहीं करती। यह भेजने का कार्य भी पहले से उपस्थित फ्रिक्वेन्सी के इस्तेमाल से होता है। मतलब उन्हें फ्रिक्वेन्सी भी तैयार मिली है। फिर उन्हें दूसरी कौन सी सुविधा पहुँचाने के अलग से पैसे चाहिए? यदि मैं वीडियो देखता हूँ तो यू ट्यूब वालों को पैसे माँगना चाहिए, फ़ोन कंपनी को किस बात के पैसे दूँगा? क्या उन्होंने यह वीडियो बनाया है? 
  • यदि हम केबल टीवी की भी बात करे, तो हम केबल टीवी वालों को पैसे देते है सिग्नल हमारे घर तक पहुँचाने के लिए। बाकी के जो पैकेज है वह उन कंपनियों के लिए है जो हमें अपने चेनल्स पर कार्यक्रम बना कर प्रसारित करती है। वह कंपनियाँ कुछ बनाती है। सिर्फ़ भेजती नहीं है। 
  • अब आते है फ़ोन काल्स में मूल्यों पर। यहाँ पर झोल है। यह झोल भी फ़ोन कंपनियों का ही शुरू किया हुआ है। इन फ़ोन कंपनियों ने बिना वजह हम लोगो से बहुत पैसे बनाए है। धीरे धीरे काल्स के मूल्य कम हुए है। यदि इनका बस चलता तो आज भी हम अलग अलग तरीके से पैसे दे रहे होते। जो कार्य इन्होंनें मोबाइल फ़ोन के मूल्यांकन के समय किया था, वही गलत मूल्यांकन फिर से लागू करने की कोशिश कर रहे है। 

दोनों पक्ष के तर्क को प्रस्तुत करने के पश्चात आप लोगो को एक और उदाहरण देना चाहूँगा, इस उदाहरण की सहायता से आप समझ पाएँगे की क्या होने वाला है। 

आप अपने बच्चों के साथ एक पार्क में जाते है। वहाँ पर आपको अंदर जाने के लिए एक टिकट लेना पड़ता है। आप टिकट लेकर अंदर जाते है। फिर अंदर में अलग अलग हिस्से बने हुए है, जिन हिस्सों में अलग अलग लोगो ने अलग तरह के खेल, झूला या सवारियाँ लगाई हुई है। कुछ का इस्तेमाल करने पर कोई रोक नहीं है, एवं कुछ के लिए आपको अलग से टिकट लेना पड़ता है। परंतु आपको यह जानकार आश्चर्य होता है की आप उन हिस्सों में नहीं जा सकते। आपको अलग से टिकट लेना पड़ेगा हर हिस्से में जाने के लिए। इस टिकट को खरीदने के बाद आप उन खेलो का उपयोग कर सकते है, पर उन खेलो के मूल्य को भी चुका कर। यहाँ तनिक भ्रांति हो गयी है। फिर से बताता हु। 

  • आपने पार्क में अंदर जाने के लिए टिकट लिया। 
  • आपने झूले वाले हिस्से में जाने के लिए अलग से टिकट लिया।
  • अब आप झूले के पास है, झूले अलग अलग लोगो ने लगाए है। कुछ मुफ्त है, तो कुछ में टिकट है। आप अपनी पसंद के हिसाब से झूला लेते है। शायद मुफ्त वाला या फिर से एक और टिकट लेकर। 

अब शायद आपको समझ आया होगा। 

  • पहला टिकट बेसिक इंटरनेट इस्तेमाल करने का था। जिसे हम लोग डाटा पैक भी कहते है। 
  • दूसरा टिकट वीडियो देखने का था। जिसे टेलिकॉम कंपनियाँ डालना चाहती है। 
  • उसके बाद आप यू ट्यूब के फ़्री वीडियो देखे या फिर ऑनलाइन मूवी देखने के लिए किसी और कंपनी की सुविधा का पैसे देकर उपयोग करे, यह आपकी मर्ज़ी है। 

इसका मतलब सरल शब्दों में यह है, कि फ़ोन कंपनियों को आपके इंटरनेट इस्तेमाल के लिए पैसे चाहिए, परंतु सिर्फ़ इंटरनेट इस्तेमाल के लिए नहीं, बल्कि उसके जरिए आप जो भी सुविधा का उपयोग करे, फ़ोन कंपनी उसके लिए आपसे अलग से पैसे लेगी। यदि और सरल तरीके से समझना हो तो आप अपने घर में बिजली इस्तेमाल करने के पैसे देते है, पर बिजली कंपनियाँ कल आपको यह कह सकती है की आप यदि बिजली का उपयोग पंखे और बत्ती के अलावा किसी और रूप में करते है, तो उसके लिए अलग पैसे देने पड़ेंगे। यानि फ़्रिज के लिए अलग, टीवी के लिए अलग इत्यादि। इसी प्रकार पानी पीने के लिए तो ठीक है, पर यदि आप उस पानी से शरबत बनाते है तो उसके लिए अलग से पैसे लेंगे। भले ही शरबत आपने अलग से खरीदा क्यों ना हो। 

क्या हम इसे रोक सकते है? 


जी हाँ। यह अभी लागू नहीं हुआ है। ट्राई ने अपने वेब साइट पर हम सभी से अपने सुझाव देने को कहा है। समस्या यह है की उन्होंने 118 पन्ने, छोटे अक्षर में अपने वेब साइट पर डाला है। अब हम सभी से कहा जा रहा है, की उसे पढ़िए, एवं उनके 20 प्रश्नों का उत्तर  दीजिए। अब पहली बात तो यह है की कोई 118 पन्ने नहीं पढ़ेगा, दूसरी बात कि बिना पढ़े आप उन 20 प्रश्नों के उत्तर कैसे दे सकते है। मतलब यह एक ऐसा तरीका है जिससे बहुत कम लोग इसका विरोध करेंगे, और फिर यह नियम लागू कर दिया जाएगा। जब लोग कहेंगे कि यह क्यों हुआ? तो जवाब मिलेगा कि आप लोगो ने अपनी राय ही नहीं दी। 

पर कहते है ना, कि जहाँ चाह है, वही राह भी है। कुछ अच्छे लोगो ने मिलकर एक वेब साइट बनाई है, जिसके जरिए आप ट्राई को अपने सुझाव भेज सकते है। यदि आपको ऊपर लिखे लेख से यह समझ में आ गया है कि जो होने जा रहा है वह गलत है, तो फिर आपको 118 पन्ने पढ़ने कि जरूरत नहीं। सुझाव को उन 20 प्रश्नों के उत्तर के रूप में रखा गया है, जिसे आप पढ़ना चाहे तो पढ़ सकते है, बदलना चाहे तो बदल सकते है। और फिर जब संतुष्ट हो, तो भेज सकते है। अब तक 3 लाख से अधिक लोगो ने अपने सुझाव भेज दिये है। सुझाव भेजने की आख़िरी तारीख 24 अप्रैल है। जी हाँ, आपके पास बस कुछ ही दिन है अपने विरोध को दर्ज़ कराने के लिए। इसलिए, इस वेब साइट पर जाये, एवं ईमेल से अपने विरोध को ट्राई तक पहुँचा दे। 

अंत में AIB के इस वीडियो को देखिए, यह भी इसी के बारे में है। और यदि आपको लगता है यह सही है, तो औरों को भी बताए। आप चाहे तो इस लेख को उनके साथ साझा करे, या फिर गूगल पर खोजें, और भी बहुत जानकारी मिलेगी इसके बारे में। 





Comments

Popular posts from this blog

Sholay - Special Edition DVD of Alternate Version

HAPPY NEW YEAR 2011 TO ALL! This is my 50th post on this Blog, and I never thought I can post upto 50 when I started. I wanted to post this in December 2010, as my last post of the year. But somehow, the time taken in research as well as year end holidays delayed it, and now we are with this, my 50th post, about Sholay Special Edition DVD and Alternate Version, as the first post this year. Sholay ! The name is enough! Yes, I am talking about Sholay the movie! The most famous movie of Indian film industry ever! There are so much written about Sholay, that I don't think I can add any new information in the already known knowledge about this movie! It’s a cult movie! Even today, after 35 years of its release, people still remember the characters, not just the main characters, but small guest appearance characters such as Surma Bhopali or Jailor, Sambha, Kalia as well! We still refer Sholay dialogues in day to day conversations! So, if people know so much and remember this much

कारवाँ – ग्राफिक नॉवेल (हिंदी)

याली ड्रीम्स की अँग्रेजी में प्रकाशित और प्रशंसित ग्राफिक नॉवेल कारवाँ अब हिंदी में उपलब्ध हो गयी है। आजकल के सभी नए कॉमिक्‍स प्रकाशक अपनी किताबें अँग्रेजी में ही प्रकाशित करते है। यह उनकी विवशता है, क्योंकि नए प्रकाशक के पास उत्तम कहानी और चित्रांकन तो है, परंतु प्रकाशित पुस्तकों के वितरण का उपयुक्त साधन नहीं है। उन्हें कॉमिक कान या फिर ऑनलाइन स्‍टोर्स पर निर्भर रहना पड़ता है। फिर उत्तम श्रेणी की कहानी, कला एवं रूप-सज्जा देने पर पुस्तक का मूल्य भी अधिक होता है। हिंदी में पाठकों की संख्या तो है, परंतु अधिक पैसे खर्च करके नए प्रकाशक की कॉमिक्‍स लेने वाले पाठक कम है। ऊपर से बिना देखे, ऑनलाइन खरीदने वाले तो और भी कम है। ऐसे में अँग्रेजी के पाठक तुलनात्मक रूप से अधिक हैं। यही कारण है कि आज हरेक प्रकाशक अँग्रेजी में ही अपनी कॉमिक्‍स प्रकाशित कर रहा है। भले ही कहानियाँ शुद्ध देशी है, पर भाषा विदेशी है। यह एक विडंबना है, जिसे आज प्रकाशक और हिंदी पढ़ने वाले पाठक, दोनों को झेलना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि हिंदी में कॉमिक्‍स एकदम प्रकाशित नहीं होती। राज कॉमिक्‍स आज भी हिंदी में कॉमिक प्रकाशि

TnT – Taranath Tantrik – City of Sorrows

I read both part of Taranath Tantrik - City of Sorrow , and to summarize it, I can only say that I just can’t wait for the third installment. Brilliant story, keeps you gripped till the last page in both part. I will not discuss spoilers here. The story is about a Psychic Taranath Tantrik working with his friends Shankar , a CID office, Sneha , a TV journalist and   Vibhuti , a horror novelist, in an investigation, where someone is trying to change the City of Joy Kolkata into City of Sorrows.  First part shows glimpse into Taranath’s past, and cut to present day for main story to develop. The second part again shows villain’s past, and then move to current day. So, the first one introduced TnT to us, and started chain of events which makes the story. Then second part introduced the villain to us, and the story progressed.  I liked this type of storytelling, which gives you a glimpse of main character’s past, and then jumps directly to the story. Shamik Dasgupta has once again